Monday, March 9, 2009

आईटीएन को बाय - बाय



अवकाश पर चल रहे आईटीएन, मुंबई के सीनियर एडिटर निरंजन परिहार ने अपना इस्तीफा प्रबंधन के पास भेज दिया है। परिहार के बारे में बताया जाता है कि पारिवारिक पृष्ठभूमि राजनीतिक होने के चलते वे राजस्थान में विधानसभा चुनावों के दौरान अशोक गहलोत के साथ सक्रिय थे। सूत्रों का कहना है कि अशोक गहलोत के सत्ता में आने के बाद परिहार अब राजस्थान में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए काम करेंगे।

निरंजन परिहार पहले जनसत्ता में नौ साल तक सीनियर पोस्ट पर रहे। मुंबई से प्रकाशित हिन्दी दैनिक प्रातःकाल की परिहार ने ही शुरूआत की और दो साल तक वे इसके स्थानीय संपादक रहे। फिर सहारा समय टीवी में चले गये। आईटीएन से पहले वे सहारा समय टीवी नेटवर्क में एडिटोरियल कोआर्डिनेटर रहे।

ज्ञात हो कि पिछले साल सितंबर महीने में लांच हुए न्यूज चैनल आईटीएन, मुंबई पर मंदी की ऐसी मार पड़ी कि यह चैनल अब पूरी तरह आफ एयर हो चुका है। चैनल से जुड़े ज्यादातार दिग्गजों ने इस्तीफा दे दिया है। सूत्रों के अनुसार इस चैनल के एक्जीक्यूटिव एडिटर मनोज सिंह, प्रेसीडेंट अमित उपाध्याय, वाइस प्रेसीडेंट कन्हैया सिंह ने पहले ही इस्तीफा दे दिया था। प्रोड्यूसर और रिपोर्टर स्तर पर कार्यरत लगभग 25 लोगों ने इस्तीफा देकर टीवी9 का दामन थाम लिया। सूत्रों का कहना है कि चार महीने से सेलरी न मिलने के चलते लोग इस्तीफा देने को मजबूर हुए। प्रबंधन की तरफ से बताया गया कि पैसा न होने के चलते चैनल चला पाने में मुश्किलें पेश आ रही हैं।

जनसत्ता अखबार के वो तेज - तर्रार रिपोर्टर और प्रभाष जोशी की यादें



जनसत्ता के पूर्व प्रधान संपादक और हिन्दी पत्रकारिता के पितामह प्रभाष जोशी ने आज अपने कॉलम में किसी जमाने के बेहद तेज तर्रार रिपोर्टर माने जाने वाले राकेश कोहरवाल के बारे में अपना संस्मरण लिखा है । राकेश कोहरवाल का पिछले दिनों दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था । प्रभाष जोशी ने उनकी बदहाली के बारे में तो लिखा ही है , ये भी लिखा है कि किन परिस्थितियों में राकेश कोहरवाल को जनसत्ता छोड़ना पड़ा था । हम जनसत्ता में छपे उनके कॉलम का एक बड़ा सा हिस्सा खबरी अड्डा पर पोस्ट कर रहे हैं । इस कॉलम में आलोक तोमर औऱ महादेव चौहान का तो जिक्र है ही , बहुत कुछ प्रभाष जोशी ने लिखा है , जिसके बारे में पहले न तो लिखा गया , न हीं लोगों को पता है । इस कॉलम में उनकी चिंता भी झलकती है और उस दौर की एक झलक भी - खबरी अड्डा

राकेश कोहरवाल जनसत्ता शुरू करने के पहले बनी पांच रिपोर्टरों की टीम में थे । रामबहादुर राय इस टीम के मुखिया थे । आलोक तोमर , महादेव चौहान और दयाकृष्ण जोशी । सब परीक्षा देकर और अपने काम के बूते आए थे । किसी सिफारिश या पव्वे पर नहीं । शुरू के पांच - छह वर्षों में इनने जिस लगन और मेहनत से काम किया , कई रिपोर्टर उमर भर नहीं करते । फिर अखबार जम गया और उसमें काम करने वालों का नाम हो गया और वे अपने क्षेत्र में प्रतिष्ठित हो गए तो लगन और मेहनत अपने आप कम हो गई और पत्रकारिता के दूसरे अवगुण असर दिखाने लगे । लेकिन टीम भावना और अपने काम का गर्व -गौरव फिर भी बना रहा । कई बार लगता कि शायद यही उनके काम के प्रेरक कारक बचे हैं । अखबार फैलकर बड़ा हो गया था और टीम में और लोग भी आ गए थे । वे प्रतिष्ठित अखबार में आए थे । उनमें पुराने लोगों जैसी अखबार को बनाने की अगर नहीं थी । ऐसा होता ही है । कितनी ही प्रेरित और गुणी टीम हो समय और सफलता उसे मामूली कर देती है । हमारी टीम के साथ भी ऐसा ही होने लगा था । रामबहादुर राय अगवानी करते और सबकी जिम्मेदारी निभाते ऊब गए थे और राजन्द्र माथुर के बुलावे पर हमसे पूछकर नवभारत टाइम्स में विशेष रिपोर्टिंग करने चले गए थे । दूसरे पुरानों के बारे में तरह - तरह की खबरे आती रहतीं और मुझे विचलित और दुखी करती रहतीं । इसी बीच अकबर आई कि एक फाइव स्टार सेक्स रैकेट पकड़ा गया है और उसकी कर्ता एक लड़की ने जो नाम बताए हैं उनमें कई राजनेता और कुछ पत्रकार भी हैं । पत्रकारों में एक नाम दुर्भाग्य से राकेश कोहरवाल का भी था ।

हम सब को खबर देने और सब की खबर लेने वाले अखबार थे । यह तो नहीं हो सकता था कि पांच पत्रकारों के नाम आए हैं इसलिए खबर को दबा दी जाए । वह छपी जैसी कि छपना चाहिए थी ।इतने से ही अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं होनी थी । राकेश का नाम आने से नैतिक और प्रशासनिक जिम्मेदारी भी आ गई थी । खोज खबर करने वाली रिपोर्टरों की टीम को इस कांड की छानबीन में लगाया गया । रामबहादुर राय को भी कहा कि वो अपनी स्वतंत्र छानबीन करें । सभी तरफ से मिली जानकारी से इतना तो साफ था राकेश कोहरवाल खुद शामिल हों या न हों । राजनेताओं - पत्रकारों का जो दल जाने अनजाने इसमें पड़ गया था उसमें राकेश कोहरवाल भी शामिल थे । एक अच्छे और प्रतिष्ठित रिपोर्टर को ऐसी सोहबत में नहीं पड़ना चाहिए क्योंकि उसका काम विश्वसनीय और प्रामाणिक नहीं रह जाता है । हमने खबर भी छापी और यह भी तय किया कि इस कांड के बाद वे दिल्ली राकेश को दिल्ली में रिपोर्टिंग न करने दिया जाए । उन्हें चंडीगढ़ भेज दिया जाए । राकेश कोहरवाल को लगा कि पुलिस और जनसत्ता की पूरी रिपोर्टिंग टीम ने उनके साथ साजिश कर के इस कांड में उनका नाम रगड़ा है; और उनकी चरित्र हत्या की गई है । मैंने उनसे कहा कि ऐसा है तो वे इस्तीफा दे सकते हैं ।

उनने नहीं दिया और चंडीगढ़ चले गए । तब हरियाणा में मुख्यमंत्री बने देवीलाल राष्ट्रीय नेता के रूप में उभर रहे थे । दिल्ली में लोकसभा चुनाव की तैयारी में विश्वनाथ प्रताप सिंह के इर्द गिर्द विपक्ष एकजुट हो रहा था । जनता दल बना था जिसे बाएं से वामपंथी और दाएं से भाजपा मदद को तैयार हो रहे थे । चेन्नई में जनता दल का सम्मेलन था जिसमे देवीलाल की भूमिक सहज ही अहम थी । वे अपना विमान लेकर जा रहे थे और उनकी इच्छा थी कि उनके साथ राकेश कोहरवाल भी संवाददाता की तरह जाएं । मैंने संदेश दिया कि हमें चंडीगढ़ से रिपोर्टर नहीं भेजना है । लेकिन देवीलाल को तो सम्मेलन में उनकी भूमिका का अलग से कवरेज चाहिए था । वे राकेश पर चलने का जोर देते रहे । चंडीगढ़ संपादक के ना करने के बावजूद राकेश उनके साथ चेन्नई चले गए । चूंकि वे अखबार की तरफ से कवर करने नहीं भेजे गए थे इसलिए उनकी रपट नहीं छपनी थी । सम्मेलन के बाद देवीलाल दिल्ली आए और हरियाणा भवन में रूके । राकेश भी उनके साथ थे । वे एक दो विश्लेषण भी लिख के समाचार संपादक को दे गए थे , जो नहीं छपने थे और नहीं छपे । राकेश आकर मालूम भी कर गए कि उनका लिखा क्यों नहीं छप रहा है।फिर अगले दिन रामनाथ जी का मुंबई से फोन आया कि ये देवीलाल क्यों इतना नाराज हो रहा है । तब तक देवीलाल ही नहीं उनके बेटे ओमप्रकाश चौटाला और रणजीत सिंह भी कई बार रामनाथ जी को मुंबई फोन कर चुके थे ।रामनाथ जी आए तो उनको मैंने कहा कि मामला सीधा है । हमें तय करना पड़ेगा कि जनसत्ता का संपादक और मालिक देवीलाल हैं या मैं और आप । अगर हर एक मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री अपने साथ एक एक रिपोर्टर को अटैच करता चला गया और रिपोर्टर हमारी सुनने के बजाय नेता की सुनता गया तो न तो जनसत्ता अखबार रह जाएगा न ही एक्सप्रेस निर्भीक पत्रकारिता का संस्थान । रामनाथ जी को मिनट नहीं लगा । मैंने उसी दिन राकेश कोहरवाल को बुलाकर कहा आप या तो जनसत्ता के रिपोर्टर रह सकते हैं या देवीलाल के पीआरओ । चूंकि आपने रिपोर्टर के नाते व्यवहार नहीं किया है इसलिए मुझे आपका इस्तीफा चाहिए । उनने दिया । हमने मंजूर कर लिया। देवीलाल उनके दोनों बेटे सब करके भी राकेश कोहरवाल को बहाल नहीं करवा सके । उसके बाद राकेश कोहरवाल कहीं जमा नहीं न उससे कोई काम हुआ । हमारे दो और प्रखर रिपोर्टर आलोक तोमर और महादेव चौहान भी पटरी से उतरे तो लौटकर उस शान और रफ्तार पर नहीं आए जो जनसत्ता में थी । राकेश कोहरवाल, आलोक तोमर और महादेव चौहान तीनों मुझे अपराध बोध देते हैं । कैसे होनहार जीवन कैसे बिगड़ गए । क्या खून मेरे हाथों पर हैं ।