Friday, February 12, 2010

शाहरुख तो बहुत भारी साबित हुए ठाकरे और उनकी शिवसेना पर


निरंजन परिहार
शाहरुख खान को बधाई दीजिए। वे वास्तव में बधाई के पात्र हैं। उन्होंने ना तो बाल ठाकरे से माफी मांगी और ना ही उनकी शिवसेना के सामने झुके। भले ही अपनी गुंडागर्दी के बल पर शिवसेना ने मुंबई के कई इलाकों में बंद कराया। लेकिन न केवल देश भर, बल्कि मुंबई में भी शाहरुख की फिल्म धड़ल्ले से रिलीज हुई और कई सिनेमाघरों में हाउस फुल के बोर्ड़ भी लगे। मामला बहुत गरम होने के बावजूद शाहरुख मुंबई से उड़े और सीधे दुबई चले गए। लेकिन बाल ठाकरे से नहीं मिले। शिवसेना ने अपनी इस हार पर बेशर्मी का परदा ढंकते हुए कहा कि शाहरुख खान तो बाल ठाकरे से मिलना चाहते थे। लेकिन सरकार ने उनको मिलने से रोक दिया। पर, जब फिल्म धड़ल्ले से रिलीज हो गई और लोग फिल्म देखने जाते हुए उपद्रव के लिए शिवसेना को बुरा भला कहने लगे तो खाल बचाने की कोशिश में शाम होते - होते आश्चर्यजनक ढंग से शिवसेना का एक और बयान आया कि शिवसेना ने बाल ठाकरे से नहीं बल्कि देश से माफी मांगने के लिए शाहरुख से कहा था। शिवसेना के दोनों बयान विरोधाभासी थे। अरे भाई, अगर शाहरुख को देश से माफी मांगनी थी, बाल ठाकरे से नहीं। तो, फिर उनसे मिलने जाने की बात ही कहां से आ गई ? फिर बाल ठाकरे भी कुल मिलाकर आपकी और हमारी तरह सिर्फ एक व्यक्ति हैं। बाल ठाकरे किसी देश का नाम नहीं है। जो, उनसे जाकर माफी मांगने पर सारा देश शाहरुख पर मेहरबान हो जाता। कुल मिलाकर, आम तौर पर नरम रहने वाले शाहरुख अपने देश के मजबूत कहे जाने वाले नेता शरद पवार से भी बहुत कड़क साबित हुए हैं। इसलिए वे आपकी और हमारी, सबकी बधाई के पात्र हैं।
देश के सबसे बड़े मराठा नेता कहे जाने वाले शरद पवार, बाल ठाकरे और उनकी शिवसेना के सामने बहुत छोटे साबित हुए। वे शिवसेना की धमकियों से डरकर हाथ जोड़ते हुए बाल ठाकरे की चरण वंदना करने उनके के घर जा पहुंचे। लेकिन शाहरुख खान ने ऐसा नहीं किया। वे ना तो झुके और ना ही डरकर चुप बैठे। अब तक का इतिहास रहा है कि शिवसेना इसी तरह डरा – धमका कर बॉलीवुड़ को अपने आतंक के साए में कैद करके रखती रही है। लेकिन शाहरुख खान ने माफी मांगना तो दूर, अपने कहे शब्दों पर अड़े रहने की बात कहकर खुद को मजबूत साबित किया।
शाहरुख ने कहा था कि – ‘मुझे अपने भारतीय होने पर गर्व है और हमको अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ अच्छे संबंध रखने चाहिए।‘ लेकिन शिवसेना भड़क गई। उसको मुद्दा मिल गया और शाहरुख को पाकिस्तान जाकर बसने तक की सलाह भी दे डाली। शिवसेना ने उनके पुतले जलाए। पोस्टर फाड़े। और सिनेमाघर चलानेवालों को चिट्ठी लिखकर धमकाया कि वे उनकी फिल्म ‘माई नेम इज खान’ को अपने यहां रिलीज ना करे। और करें तो फिर उसके भुगतान के लिए भी तैयार रहें। शाहरुख उस वक्त विदेश में थे। तो, शिवसेना के नेताओं ने बाकायदा शाहरुख को धमकाया था कि वे भारत की जमीन पर पैर रखकर देखें। लेकिन शिवसेना से बिल्कुल नहीं डरे और उसके दूसरे दिन ही शाहरुख मुंबई आ गए। पर, बाल ठाकरे और उनकी शिवसेना कुछ भी नहीं कर सकी।
हम सभी जानते हैं कि फिल्म की रिलीज के रुकने से बॉलीवुड़ को बहुत बड़ा नुकसान होता है। आजकल कोई भी बड़ी फिल्म सौ करोड़ रुपए से कम में नहीं बन पाती। इतनी बड़ी लागत का एक - एक दिन का ब्याज ही लाखों रुपए में होता है। सो अपनी फिल्म की रिलीज को रोकने की कोसिश करने वालों से समझौता करने को कोई भी मजबूर हो ही जाता है। शिवसेना को बॉलीवुड़ की यह सबसे बड़ी मजबूरी अच्छी तरह से पता है। सो रिलीज रुकवाने को वह ब्रह्मास्त्र के रूप में अपने हक में अकसर उपयोग करती रही है। शिवसेना ने शाहरुख खान को धमकाया कि वह पाकिस्तानी क्रिकेटरों को आईपीएल मैचों में जगह नहीं देने के मामले मे दिए गए अपने बयान को वापस ले। वरना उनकी फिल्म को रिलीज नहीं होने दिया जाएगा। पर, शाहरुख ने कोई परवाह नहीं की। उल्टे उन्होंने शिवसेना और उसके नेताओं को देश भक्ति की सलाह दी। और साफ साफ कहा भी कि उन्होंने जो कुछ कहा है, वह अपनी अंतरात्मा का अनुसरण करते हुए कहा है। मतलब साफ था कि मामला अंतरात्मा का है, सो, अपनी बात को वापस लेने का सवाल ही नहीं उठता। शिवसेना को जो करना है, कर ले। और क्या !
शाहरुख की फिल्म ‘माई नेम इज खान’ जोरदार ढंग से रिलीज हुई। रविवार की रात 12 बजे तक सिनेमाघरों के मालिक असमंजस में थे। लेकिन सुबह होते होते सबका डर गायब था। और फिल्म ढंग से रिलीज हुई। अड़ंगा डालने वालों के साथ पुलिस ने बहुत सख्त बर्ताव किया। जिसने भी खलल डाली उस पर डंडे पड़े। शिवसेना बेचारी अकेली पड़ गई। करीब 20 साल से भी ज्यादा सालों से उसकी हमसफर बीजेपी भी शिवसेना के साथ कहीं नहीं दिखाई दी।
शरद पवार पूरे हिंदुस्तान के मंत्री हैं। इससे पहले पवार देश के रक्षा मंत्री थे। किसकी रक्षा कैसे की जानी है, इसके नुस्खे भी वे अच्छी तरह जानते हैं। महाराष्ट्र में उनकी अपनी सरकार है। वहां का गृह मंत्रालय भी उनका अपना मंत्री ही चला रहा है। पर, फिर भी पवार डरकर ठाकरे की शरण में पहुंच गए। पर, शाहरुख सिर्फ और सिर्फ एक कलाकार हैं। इससे ज्यादा कुछ भी नहीं हैं। और जो लोग नजदीक से जानते हैं, वे यह भी अच्छी तरह से वाकिफ हैं कि शाहरुख एक बेहद डरपोक किस्म के इंसान हैं। फिर भी शिवसेना के सामने उन्होंने जो हिम्मत दिखाई है, वह काबिले तारीफ है। अपन कभी शाहरुख के फैन नहीं रहे। फिर भी एक सीधा - सादा सामान्य मनुष्य, जब अपने प्रशंसकों के बूते पर बड़ी राजनीतिक हस्तियों के हर वार का मुकाबला करने की ताकत दिखाए, तो वह बधाई जैसे छोटे से आशीर्वाद का हक तो पा ही लेता है। शाहरुख ने आम आदमी की ताकत दिखाई है। इसीलिए, अपना आग्रह है कि शाहरुख खान को बधाई दीजिए साहब। उन्होंने बाल ठाकरे और उनकी पूरी शिवसेना को उसकी औकात दिखाई है।
(लेखक जाने – माने राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं। उनसे niranjanparihar@hotmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।

Wednesday, February 10, 2010

बुढ़ापे में ठाकरे का बहू से सामना


- निरंजन परिहार -
शिवसेना प्रमुख का बुढापा खराब हो रहा है। या यूं भी कहा जा सकता है कि वे खुद ही अपना बुढ़ापा खराब करवा रहे हैं। अकसर किसी भी वृद्ध के लिए किसी के भी मन में सम्मान ही होता है। और इस उमर की सबसे बड़ी जरूरत भी सम्मान ही हुआ करती है। हर बूढ़ा इंसान चाहता है कि कोई भी उसके विरोध में ना बोले। खासकर घर के लोग इतना तो खयाल करे, ताकि इस उमर में उसके मान सम्मान की रक्षा होती रहे। पर, बाल ठाकरे के साथ उल्टा हो रहा है।
राजनीति में बाल ठाकरे के असल अवतार कहे जाने वाले भतीजे राज ठाकरे तो सामने तलवार लेकर खड़े ही है। अब बहू भी मैदान में उतर आई है। फिल्म "माई नेम इज खान" की रिलीज पर शिवसेना द्वारा खड़े किए गए बवाल के बीच स्मिता ठाकरे भी शाहरूख खान की पैरवी में मैदान में कूद पड़ी हैं।
ठाकरे परिवार की सबसे सक्रिय और लोकप्रिय बहू स्मिता ने खुलकर कहा है कि शाहरुख खान की फिल्म "माई नेम इज खान" के मामले में शिवसेना जो कुछ भी कर रही है, वह ठीक नहीं है। आज मुंबई में स्मिता ने शाहरूख खान का समर्थन करते हुए शिवसेना पर सीधा निशाना साधा। उन्होंने कहा कि शिवसेना द्वारा इस फिल्म का विरोध करना बिल्कुल गलत है। स्मिता ने इस तरह के विरोध को राजनीतिक सेंसरशिप का बताते हुए इसका विरोध किया है। और शाहरुख का समर्थन में यह भी कहा है कि कलाकार भी आखिर एक सामान्य इंसान है, जिसे अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का हक है।
यह कोई बहुत दिन पुरानी बात नहीं है, जब शिवसेना में बहू स्मिता ठाकरे का फरमान चलता था। राज ठाकरे जब शिवसेना में ही थे, तब भी स्मिता की बहुत चलती थी। पार्टी में उनके रुतबे का इससे बड़ा सबूत और कुछ हो ही नहीं सकता कि शिवसेना में किसी की भी उनका नाम लेकर संबोधित करने की हिम्मत कभी नहीं देखी गई। सम्मान की यह आदत शिवसेना के कार्यकर्ताओं में आज भी मौजूद है। लोग सम्मान से उनको ‘भाभी’ कहते हैं। वजह यही थी कि स्मिता ठाकरे पर बाल ठाकरे की मेहरबानी थी और वे सबसे चहेती बहू इसलिए भी कही जाती है क्योंकि वयोवृद्ध होते ठाकरे की सेवा भी उन्हीं ने की।
पर, वक्त बदला और हालात भी बदल गए। तो पिछले दिनों सबके सामने स्मिता ठाकरे ने खुलकर कहा था कि अब मातोश्री में दम घुटने लगा है। तब लबको लग गया था कि भाभी अपने लिए नए दरवाजे खोल सकती हैं। और उसके तत्काल बाद ही जब स्मिता ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और महासचिव राहुल गांधी की तारीफ की, तो तय हो गया कि उनका रास्ता किधर जा सकता है। लेकिन हर कोई मान रहा था कि स्मिता औरों की तारीफ तो कर सकती हैं। लेकिन यह कभी किसी ने भी नहीं सोचा था कि बाल ठाकरे का बेदह सम्मान करने वाली उनकी यह लाडली बहू कभी उनके किए और कहे को गलत ठहराकर विरोध में भी उतर सकती है। पर, अब बहू भी बाल ठाकरे मे सामने खड़ी हो गई है। शाहरुख खान के मामले मैं भाभी ने शिवसेना की कार्रवाई को ना केवल गलत ठहराया है बल्कि उसका विरोध भी किया है।
स्मिता ठाकरे शौक से समाजसेविका है और पेशे से फिल्म निर्माता। वे इंडियन मोशन पिक्चर प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन की अध्यक्ष रह चुकी हैं और मुक्ति नामक एक एनजीओ भी चलाती हैं। पिछले दिनों मराठी फिल्म ‘झेंडा’ के खिलाफ जब महाराष्ट्र के राजस्व मंत्री नारायण राणे के समर्थकों ने हंगामा किया था। और फिल्म में कुछ बदलाव के बाद ही उसको चलने दिया। तब स्मिता कुछ भी नहीं बोली थी। बिल्कुल चुप रहीं। राणे अब कांग्रेस में हैं। और शाहरुख भी कांग्रेस खेमे के ही माने जाते हैं। इससे स्मिता की नई राह को समझा जा सकता है। शाहरुख का समर्थन और वह भी ससुर ठाकरे के विरोध के साथ। स्मिता ने पहली बार अपने जीवन का सबसे मजबूत कदम बढ़ाया है। लेकिन फिर भी बाल ठाकरे का क्या? वे इस उमर में भी जो कुछ कर रहे हैं और जिस तरह के बयान देकर अपनी सेना से जो कुछ भी करवा रहे हैं, उसमें स्मिता ठाकरे जैसी उनकी सबसे लाडली बहू के पास भी उनका विरोध करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है। बाल ठाकरे के लिए बुढ़ापे में इससे बुरी बात और क्या हो सकती है ?

राहुल गांधी की राजनीति पर मुंबई में कीचड़ उड़ेल दिया पवार ने


- निरंजन परिहार -
शरद पवार ने सब कबाड़ा कर दिया। राहुल गांधी मुंबई आकर सिर्फ चार घंटे में ही शिवसेना को उसकी औकात दिखा कर गए थे। पर, पवार ने राहुल गांधी के किए – कराए पर कीचड़ उड़ेल दिया। शिवसेना के मुखिया बाल ठाकरे की विरोध की धमकी की परवाह किए बिना राहुल गांधी सड़कों पर चले, लोकल ट्रेनों में घूमे और भीड़ में घुसकर लोगों से भी मिले। मगर बाल ठाकरे और उनकी शिवसेना राहुल गांधी का कुछ भी नहीं बिगाड़ पाई। राहुल गांधी के दौरे के बाद पूरी मुंबई के सामने यह साबित हो गया था कि शिवसेना के आतंक और उसके धमकीतंत्र की कोई बहुत बड़ी औकात नहीं है।
लेकिन राहुल के दौरे के तत्काल बाद ही केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने बाल ठाकरे को बहुत ताकतवर साबित करने की दिल खोल कर कोशिश की। वौसे, तो पवार महाराष्ट्र में अपने आप से ज्यादा मजबूत नेता किसी को भी नहीं मानते। पर, फिर भी उन्होंने आईपीएल के क्रिकेट मैचों के दौरान शांति बनाए रखने की बाल ठाकरे के घर जाकर हाथ जोड़कर विनती की।
अभी तो, राहुल गांधी के दौरे से मुंबई में शिवसेना की औकात कितनी कम हुई है, इसकी समीक्षा भी पूरी तरह से नहीं हुई थी, कि शरद पवार ने बाल ठाकरे से करबद्ध प्रार्थना करके उनका मान बढ़ा दिया। राहुल गांधी 5 फरवरी को मुंबई आए थे। और शरद पवार 7 फरवरी को ठाकरे के घर पहुंच गए। वे पता नहीं किस बात के लिए बाकायदा फूलों का गुलदस्ता देकर बाल ठाकरे का अभिनंदन भी कर आए। शरद पवार क्रिकेट मैतों के दौरान ठाकरे से सहयोग की भीख मांगने उनके घर पहुंचे थे। ठाकरे के घर ‘मातोश्री’ में दोनों नेताओं के बीच आईपीएल में पाकिस्तानी और आस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों को शामिल किए जाने पर शिवसेना के विरोध पर विचार विमर्श हुआ। पवार के साथ उनकी बीसीसीआई के अध्यक्ष शशांक मनोहर भी मौजूद थे। उन्होंने ठाकरे से आस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों की सुरक्षा की भी गारंटी मांगी। लेकिन अपनी समझ में यह नहीं आता कि आखिर ठाकरे क्रिकेट के कौनसे माई बाप हैं, या कोई पुलिस के मुखिया हैं जिनसे किसी की सुरक्षा के बारे में बात की जा सके। अरे भाई, आप दुनिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक सरकार के बहुत ताकतवर मंत्री हैं...! महाराष्ट्र में आपकी अपनी सरकार है...! और सबकी सुरक्षा का जिम्मेदार पुलिस महकमा चलाने वाला गृह मंत्रालय भी जब आपकी ही पार्टी के पास है, तो फिर बाल ठाकरे क्या सरकार से भी ऊपर की कोई चीज हो गए। जो आप उनके सामने जाकर आप गिड़गिड़ा रहे हैं ? आईपीएल मैचों के लिए सुरक्षा के नाम पर शरद पवार के ठाकरे के सामने नतमस्तक होने को एक केंद्रीय मंत्री की कायरता से ज्यादा कुछ नहीं कहा जा सकता।
शरद पवार राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं। उन्हीं की पार्टी का एक निहायत मम्मू और हद दर्जे का ऐसा डरपोक आदमी महाराष्ट्र का गृह मंत्री है, जो मुंबई पर 26 / 11 के इतिहास के सबसे खतरनाक आतंकवादी हमले के वक्त दुबक कर अपने घर में बैठा था। छगन भुजबल अपनी रिवाल्वर निकालकर सड़क पर आ गए थे। भुजबल ने गृह मंत्री आरआर पाटिल से कहा भी था कि चलो, मैं साथ हूं। फिर भी वह आदमी घर में ही पड़ा रहा। इसीलिए, शरद पवार को यह बात अच्छी तरह से पता है कि महाराष्ट्र के गृहमंत्री के रूप में आदमी की शक्ल में जिस मिट्टी के माधो को उन्होंने बिठा रखा है, उस पर कोई बहुत भरोसा नहीं किया जा सकता। लेकिन मुंबई पुलिस की ताकत पर तो विश्वास कीजिए पवार साहब। जिस मुंबई पुलिस ने शिवसेना की धमकियों की परवाह नहीं करते हुए राहुल गांधी को गली – गली पैंया – पैंया घुमते रहने के दौरान बाल ठाकरे के जमूरों से सुरक्षित रखा, वह क्या हमारे विदेशी मेहमान खिलाडियों को सुरक्षा नहीं दे सकती।
पर, अपन जानते हैं कि शरद पवार इतने मूरख नहीं हैं। वे यह यह सब अच्छी तरह जानते हैं कि बाल ठाकरे कोई सरकार से बड़ी ताकत नहीं है। फिर भी वे उनके घर गए। तो, इसके पीछे सबसे बड़ी और एक अकेली वजह यह भी है कि मुंबई में वे बाल ठाकरे की ताकत को घायल हालत में ही सही, जिंदा रखना चाहते हैं। ठाकरे की धमकियां जिंदा रहेगी, तभी पवार कांग्रेस को डराकर रख सकते हैं। दरअसल, पवार और ठाकरे के बीच आपस में काफी अच्छे संबंध रहे हैं, और आज भी हैं। इसीलिए, हर बार यह कहा जाता रहा है कि पवार अगर कभी कांग्रेस से अलग हुए तो वे शिवसेना के साथ जा सकते हैं। पता नहीं, कोई भी यह क्यों नहीं कहता कि पवार भाजपा के साथ जा सकते हैं। वैसे वह दिन अभी नजदीक आता नहीं दिखता। फिर भी पवार बहुत दूर की सोचते हैं, सो यह करना जरूरी था। शरद पवार काफी गहन और गूढ़ राजनीति की पैदाइश कहे जाते हैं। लेकिन उनकी यह राजनीति दिल्ली में भले ही फेल हो जाती है। पर, महाराष्ट्र में भरपूर चलती है।
पवार ने बाल ठाकरे के घर जाकर मुंबई में शिवसेना को सांसत में डालने वाले राहुल के रुतबे को कम करने की कोशिश की है, यह साफ समझ में आ रहा है। पता नहीं, वे कांग्रेस से किस जनम का बदला ले रहे हैं। विलास राव देशमुख ने महाराष्ट्र के विधान सभा चुनावों से बहुत पहले ही यह साफ साफ कह दिया था कि कांग्रेस को प्रदेश में विधान सभा का चुनाव अकेले ही लड़ना जाहिए। ताकि राष्ट्रवादी कांग्रेस और उसके अगुआ शरद पवार को उनकी औकात का अहसास हो जाए। देशमुख सहित कई नेता भी पवार की पार्टी से समझौता करने के मूड़ में बिल्कुल नहीं थे। लेकिन आखरी पलों में समझौता हो गया और कांग्रेस के साथ पवार की पार्टी भी सत्ता में आ गई। वरना, इस बार जो हालात थे, अकेले लड़ने पर पवार की पार्टी का क्या होता, यह सभी जानते हैं।
लाखों लोगों के अब तक तो यही लगता था कि पता नहीं क्यों बेचारे पवार के बारे में यह सत्य कुछ ज्यादा ही प्रचलित है कि वे भरोसे की राजनीति कभी नहीं कर सकते। लेकिन ठाकरे के घर जाकर राहुल गांधी के किए – कराए पर पानी फेर देने की पवार की कोशिश के बाद यह धारणा और मजबूत हो जानी चाहिए कि पवार कोई बहुत भरोसे के काबिल राजनेता नहीं है। अगर ठाकरे और शिवसेना की धमकियों का पवार डटकर मुकाबला करते तो वे राहुल गांधी से भी हजार गुना ऊंचे नेता के रूप में सम्मान पाते। वे पद के लिए कुछ भी करने और सत्ता में बने रहने के लिए किसी भी हद तक जाने वाले नेता के रूप में तो जाने ही जाते हैं। लेकिन सिर्फ इस एक ताजा घटना की वजह से आज देश शरद पवार को एक कायर, हीन और लाचार होने के साथ साथ अपने ही गृहमंत्री पर भरोसा न करने वाले नेता के रूप में भी देखने लगा है। ठाकरे के चालीस साल के आतंकराज की सिर्फ चार घंटे में ही राहुल गांधी ने जो बखिया उधेड़ डाली थी, ठाकरे को कुछ दिन तो उसके दर्द में डूबे रहने देते हुजूर। आपको इतनी जल्दी क्या थी पवार साहब ?

Sunday, February 7, 2010

ठाकरे के चालीस साल पर बहुत भारी साबित हुए राहुल गांधी के चार घंटे


-निरंजन परिहार-
बाल ठाकरे ने चालीस साल में जो आतंकराज रचने की कोशिश की थी उसे राहुल गांधी ने चार घंटे में साफ कर दिया। राहुल हवा में उड़े, सड़क पर चले, लोकल रेल में भी सफर किया और अंबेडकर के स्मारक पर फूल चढ़ाएने के बाद वापस उड़ गए। वे बाल ठाकरे की शिवसेना के मुख्यालय के एकदम पड़ोस में भी गए और शिवसेना वाले महारथी उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ सके।
मगर यहां एक सवाल यह भी उठता है कि जो सरकार राहुल गांधी की रक्षा में पूरी ताकत लगा देती है, और मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण लगातार साथ घूमते हैं। एक राज्य मंत्री तो राहुल गांधी के जूते भी उठा लेते हैं। वही राज्य सरकार गरीब हिंदी भाषियों और टेक्सी वालों की रक्षा क्यों नहीं कर पाती? यह अपनी तो क्या किसी की भी समझ में नहीं आता। क्या अब उम्मीद की जा सकती है कि राहुल गांधी की तरह आजमगढ़ और मिर्जापुर से आए टेक्सी चलाने वालों को भी मुंबई में सरक्षा के मामले में न्याय मिलेगा?
तो, मूल बात यह है कि राहुल गांधी ने शिवसेना का भ्रम तोड़ दिया। उन्होंने राज ठाकरे को भी उनकी औकात दिखा दी। कांग्रेस को राहुल गांधी के इस मुंबई दौरे का कितना फायदा हुआ, यह तो समीक्षा के बाद ही पता चलेगा। लेकिन जिस शिवसेना ने कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के मुंबई दौरे का जोरदार विरोध करने का ऐलान किया था, उसी शिवसेना को राहुल ने मुंबई में खूब छकाया।
राहुल गांधी उसी दादर इलाके में लोकल ट्रेन से उतरे जहां शिवसेना का मुख्यालय है और उसका सबसे बड़ा दबदबा भी। शिवसेना का मुख्यालय भी दादर में ही है। लेकिन फिर भी शिवसेना के मुखिया बाल ठाकरे द्वारा लाखों शिवसैनिकों से राहुल गांधी के दौरे के विरोध के ऐलान का दादर में भी कोई असर नहीं था। बाल ठाकरे की बात उनके लाखों शिवसैनिकों ने नहीं मानी। कांग्रेस के इस युवा नेता को काले झंडे दिखाने के लिए लाखों के बजाय साढ़े सिर्फ तीन सौ शिवसैनिक ही पहुंचे। यह बाल ठाकरे के बूढ़े हो जाने का असर तो है ही। शिवसेना के बहुत कमजोर हो जाने की सबसे ताजा तस्वीर भी है।
और मराठी अस्मिता के नाम पर जिस घाटकोपर इलाके में अपनी राजनीति की सबसे बड़ी दूकान चलाने वाले राज ठाकरे दम भरते हैं, वहां पर ही राज और उनकी सेना का भी कोई असर नहीं दिखा। घाटकोपर इलाके को राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना अपना गढ़ बताती रही है। वहीं के लोगों ने कांग्रेस महासचिव राहुल का जमकर स्वागत किया। राहुल को उन दलित बस्तियों में भी जबरदस्त सम्मान मिला, जिनके दम पर राज ठाकरे की पार्टी के लोग अक्सर अपनी धाक जमाने की कोशिश करते रहते हैं।
राहुल गांधी ने मुंबई की भीड़ भरी लोकल ट्रेन में भी सफर किया। राहुल ने अंधेरी स्टेशन पर आम लोगों के साथ लाइन में लगकर टिकट भी लिया। और उस विरार फास्ट में भी बैठे, जिसमें आम तौर पर नए लोग चढ़ने तक से भी बहुत डरते हैं। यह कांग्रेस के इस युवा नेता का मुंबई को एक खास किस्म का सरप्राइज था। कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने शुक्रवार को यहां सुरक्षा इंतजामों की कोई परवाह नहीं की। वैसे कांग्रेस महासचिव के मुंबई दौरे के मद्देनजर शुक्रवार को यहां सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे। यह ताकि उन्हे कोई भी काले झंडे न दिखा सके।
राहुल गांधी जुहू में अपने घर से थोड़ी ही दूर भाईदास हॉल आए थे। वहां से निकलकर वे घाटकोपर जाने के लिए अंधेरी रेलवे स्टेशन पहुंचे। पहले उन्हे हेलीकॉप्टर से वहां पहुंचना था। लेकिन फेरबदल हो गया। अंधेरी स्टेशन जाते वक्त उन्होंने अपने वाहन से ही लोगों का अभिवादन किया और जैसा कि वे आम तौर पर अपने हर दौरे में हर इलाके में करते रहते हैं, भीड़ में घुसकर कुछ लोगों के साथ बाद में हाथ भी मिलाया। अंधेरी स्टेशन से राहुल ने विरार-दादर लोकल ट्रेन के सैकंड क्लास के डिब्बे में सवारी की। वह दोपहर सवा बजे दादर पहुंचे। रेलवे के अफसरों को भी राहुल ने चौंका दिया। उन बेचारों को राहुल गांधी के लोकल ट्रेन में सफर करने के बारे में पहले से कोई जानकारी ही नहीं थी।
शिवसेना के मुखिया बाल ठाकरे ने अपने कार्यकर्ताओं को निर्देश दिया था कि वे राहुल को काले झंडे दिखाएं। और उनका जमकर विरोध करें। क्योंकि उन्होंने मराठी लोगों और महाराष्ट्र का अपमान किया है। पर, सुरक्षाकर्मियों ने यह सुनिश्चित किया कि कोई भी व्यक्ति कहीं भी झंडा उठाए दिखाई न दे। और ऐसा ही हुआ। इस दौरान किसी भी स्थिति से निपटने के लिए मुंबई पुलिस के अलावा एनएसजी, रैपिड एक्शन फोर्स और बाकी सुरक्षा बलों के कमांडो तैनात किए गए थे। जुहू में भाईदास हाल से कुछ दूर शिवसेना की महिला कार्यकर्ताओं के समूह ने सुरक्षा बैरिकेड तोड़ने की कोशिश की, लेकिन उन्हें हिरासत में ले लिया गया। निषेधाज्ञा का उल्लंघन करते हुए अंधेरी, विले पार्ले, जोगेश्वरी और घाटकोपर में कहीं कहीं पर शिव सैनिक जमा भी हुए थे। लेकिन वे कुछ नहीं कर पाए।
मुंबई में यह पहला मौका था, जब शिवसेना के मुखिया बाल ठाकरे का ऐलान खाली गया। शिवसेना के मुखपत्र सामना में बाल ठाकरे के नाम से लिखा गया था कि लाखों शिवसैनिक अपने घरों से निकल कर मुंबई में राहुल गांधी को काले झंडे दिखा कर उनका विरोध करें। लेकिन बाल ठाकरे का ऐलान बिल्कुल बेअसर साबित हुआ। वजह दोनों में से कोई एक जरूर है कि या तो राज ठाकरे के पार्टी छोड़कर जाने के बाद शिवसेना में लाखों की तादाद में शिवसैनिक बचे नहीं हैं। या फिर शिवसैनिकों ने अब उनके साहेब का आदेश मानना बंद कर दिया है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस के युवराज के इस दौरे ने मुंबई में बाल ठाकरे और भतीजे राज ठाकरे को अपना घर सम्हालने की चिंता में डाल दिया है। दाऊद यानी डी। मुंबई के सामान्य आदमी के मन में अब डी कंपनी का आतंक पहले जितना नहीं रहा। और ठाकरे यानी टी। क्या अब भी क्या यह नहीं कहा जाना चाहिए कि राहुल गांधी ने सिर्फ चार घंटे की यात्रा में ही मुंबई में टी कंपनी के चालीस साल के घमंड का सफाया कर दिया है?
(लेखक जाने माने राजनीतिक विशलेषक हैं।)