Wednesday, December 26, 2012

मुश्किल मुकाम पर मोदी


-निरंजन परिहार-

नरेंद्र मोदी एक बार फिर अपने मुकाम पर हैं। खुद चुनाव जीतकर तीसरी बार और नंबर के हिसाब से चौथी बार सीएम बन गए हैं। सीएम भले ही वे सिर्फ गुजरात के बने हैं, लेकिन देश के किसी भी प्रदेश के सीएम के मुकाबले वे ज्यादा ऊंचे सीएम लगते हैं। नंबर वन सीएम। 26 दिसंबर, 2012 को बुधवार के दिन उनके शपथ ग्रहण समारोह के जलवे से तो कमसे कम ऐसा ही लगा। पर, आगे भी उनका यह जलवा जोरदार रहेगा, या शानदार सफल होगा, यह राम जाने।

राम इसलिए, क्योंकि हमारे देश में ऐसे चमत्कारी लोगों का भविष्य अकसर भगवान ही जानता है। और नरेंद्र मोदी तो अपने आप में किसी चमत्कार से कम नहीं है, उनकी काम करने की शैली से लेकर समन्वय न रखने के अपने शौक तक, हर मामले में वे चमत्कारी अंदाज से जीते हैं, सो कुछ भी हो सकता है। अशोक गहलोत भले आदमी हैं। अभी तो खैर दूसरी बार राजस्थान के सीएम हैं, पर जब 1998 से लेकर 2003 तक पहली पारी में राजस्थान से सूबेदार थे, तो वे देश के नंबर वन सीएम कहलाते थे। देश के कई मीडिया संस्थानों ने तो बाकायदा अपनी रेडिंग में उनको पहले नंबर पर खड़ा किया था। लेकिन 2003 के चुनाव में बीजेपी ने कांग्रेस को धूल चटा दी। सो, राजनीति में नंबर मायने नहीं रखते। आंकडों का असर अहमियत रखता होता, तो राहुल गांधी तो देश के नंबर वन युवा नेता हैं। फिर हर जगह फिसड्डी क्यों है।

खैर, मामला मोदी को है और मोदी फिर सीएम हैं। अहमदाबाद के नवरंगपुरा के एक लाख लोगों की क्षमता वाले सरदार पटेल स्टेड़ियम में बुधवार को उनके शपथ ग्रहण समारोह में जयललिता से लेकर राज ठाकरे, उद्धव ठाकरे से लेकर विवेक ओबरॉय और सुब्रत रॉय सहारा से लेकर प्रकाश सिंह बादल जैसे भांति भांति के लोग भांति भांति के प्रदेशों से आए थे। नहीं आए, तो सिर्फ नीतिश कुमार, जिनको बिहार में तो बीजेपी के कंधों पर सवार होकर सरकार चलाना सुहाता है, और नरेंद्र मोदी से अपनी तुलना भी उन्हें भाती है। लेकिन मोदी की बराबरी में खड़े होने की उनकी कोशिश ऐसी फ्लॉप रही कि अब मोदी से मुंह चुरा रहे हैं, शायद इसीलिए नहीं आए। या यह भी हो सकता है कि मोदी ने उनको बुलाया ही ना हो, जैसी की मोदी की फितरत है। राजस्थान से मोदी के सखा और विश्वस्त राजनीतिक सलाहकार ओमप्रकाश माथुर और प्रदेश अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी के अलावा महारानी साहिबा वसुंधरा राजे भी वहां थीं। पूरी की पूरी बीजेपी तो अपने भूतपूर्व लौहपुरुष लालकृष्ण आडवाणी की अगुवाई में उपस्थित थी ही।

मोदी का सीएम बनना संघ परिवार के लिए खुशी का विषय होना चाहिए। क्योंकि मोदी संघ परिवार के रहे हैं। केशुभाई पटेल बनते तो वे भी संघ परिवार के हैं। और अल्लाह के करम से सरकार अगर कांग्रेस की आ जाती, तो शंकरसिंह वाघेला ही सीएम बनते। वे भी संघ परिवार के ही रहे हैं। लेकिन संघ परिवार के लिए यह चिंतन का कम और चिंता का विषय ज्यादा है। क्योंकि मोदी उसकी इच्छा के खिलाफ अपने मुकाम पर हैं। फिर संघ परिवार की तो सबसे बड़ी मुश्किल यह भी है कि मोदी के मुकाबले वह किसी भी और को गुजरात में खड़ा तक नहीं कर पाया है। उधर बीजेपी के लिए भी सबसे बड़ी मुश्किल यही है कि मोदी अगर देश की राजनीति करने के लिए गुजरात से आगे बढ़ते हैं, तो पीछे कौन संभालेगा। मध्य प्रदेश छोड़कर अर्जुनसिंह जब देश की सेवा करने दिल्ली आ गए, तो भले ही दिग्विजय सिंह ने कुछ वक्त काम संभाला। पर, बाद में वहां कांग्रेस पानी मांगने लायक भी नहीं रही। कोई आश्चर्य नहीं कि शिवराज सिंह फिर कहीं अगली बार भी मध्य प्रदेश में कांग्रेस को धूल चटा दें।

वैसे, सच यह भी है कि हमारे देश में मोदी जैसे बहुत कम राजनेता हुए हैं, जो केंद्रीय राजनीति की मुख्यधारा में तो नहीं हैं, लेकिन केंद्रीय राजनीति उन्हीं के केंद्र में रहती है। वे गोधरा के खलनायक हैं मगर कुल मिला कर हिंदुओं के बीच बहुत भले आदमी के रूप में उनकी ख्याति है। और बहुत मजबूत मुख्यमंत्री के रूप में भी वे ही सबके बीच जाने जाते हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि कभी सहज मनुष्य की तरह जीनेवाले नरेंद्र मोदी अब कुछ शौकीन भी हो गए हैं। संघ के स्वयंसेवकों की तरह नरेंद्र मोदी, जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझ लिया वाले मामले में यकीन नहीं करते। वे अब रेशमी कपड़े पहनते हैं, महंगे मोबाइल फोन पर बात करते हैं और बहुत आला किस्म के लैपटॉप अपने पास रखते हैं। अपन ने स्वर्गीय प्रमोद महाजन को बहुत करीब से देखा है। सो, कह सकते हैं कि मोदी ने काफी कुछ महाजन की तरह ही राजनीति में अपनी जलवेदार जगह खुद बनाई है। वे किसी की मेहरबानियों के मोहताज नहीं हैं। मोदी ने घरद्वार छोड़ा, पत्नी की शक्ल तो खैर बहुत सालों बाद दुश्मनों की दया से शायद अखबारों या टीवी पर ही देखी होगी। संघ परिवार के निर्देश पर ही राजनीति में आए और पहले गुजरात और फिर देश में बीजेपी के महासचिव बन कर उन्होंने आधार और रणनीति दोनों अर्जित किए।

अपन कोई नरेंद्र मोदी से बहुत अभिभूत नहीं है। और न ही उनकी राजनीति के कायल हैं। लेकिन इतना जरूर है कि उनके जैसे मुख्यमंत्री हमारे देश में बहुत आसानी से पैदा नहीं होते। यह सोलह आने सच है कि आनेवाले कुछ समय में अगर बीजेपी सत्ता में आई तो नरेंद्र मोदी ही देश के प्रधानमंत्री बनेंगे। अपन यह नहीं कह रहे कि वे बन सकते हैं। बल्कि यह कह रहे हैं कि बनेंगे ही। इस निष्कर्ष से बहुतों को ऐतराज हो सकता है। कुछ को मिर्ची भी लग सकती है। लेकिन जिनको ऐतराज है, वे भी आखिर इस सच को तो किनारे कर ही नहीं सकते। और जिनको मोदी के देश का प्रधानमंत्री बनने की संभावनाओं से मिर्ची लग रही है, उनके कहने से अमर सिंह जोकर से दार्शनिक नहीं हो जाएंगे और अब्दुल करीम तेलगी कोई धर्मराज का अवतार नहीं बन जाएगा। जिनको मोदी के मामले में अपनी बात पर ऐतराज है, वे यह मानकर अपना कलेजा ठंड़ा कर सकते हैं कि राजनैतिक रूप से भरी जवानी में मोदी प्रधानमंत्री नहीं बन पाएंगे। बासठ साल के वे हो चुके हैं, और अगले चुनाव में बीजेपी या उसके मोर्चे की सरकार बनेगी ही, इसकी फिलहाल तो कोई गारंटी नहीं है।

आज की तारीख में बीजेपी में अगर कोई जननेता है तो अपनी आधी अधूरी उपस्थिति के बावजूद नंबर वन पर बैठे अटल बिहारी वाजपेयी के बाद नरेंद्र मोदी का ही नाम लिया जा सकता है। वैसे लाल कृष्ण आडवाणी भी हैं। पर, वाजपेयी के अलावा मोदी की ही सभाओं में लाखों की भीड़ होती है और भले ही मोदी वाजपेयी की तरह कोई बहुत सहज और लोकलुभावन वक्ता नहीं हैं, लेकिन भीड़ को बांध कर रखना उन्हें आता है। मुहावरे वे गढ़ लेते हैं, और श्रोताओं की भावना का खयाल रखते हुए जरूरत होती है, उनकी ही भाषा भी बोलने लग जाते हैं। वे अपने पर लगाए गए आरोपों पर शर्मिंदा नजर नहीं आते। उल्टे वे उन आरोपों को शान से स्वीकारते हैं। और पूरी ताकत के साथ उन्हीं को तीर बनाकर उन्हीं से सामनेवाले को परास्त भी कर देते हैं। गुजरात के अब तक के सारे चुनावों में दुनिया ने मोदी को यह करिश्मा करते भी देखा है। और कांग्रेस को घायल होते भी। गुजरात ही नहीं देश भर की जनता इसीलिए उनकी कायल है। लोग उनकी इसी काबीलियत की वजह से ही प्रधानमंत्री के रूप में उनको देखने को ललायित है।

फिर भी अपना तो यह तक मानना है कि मोदी को रोकने के लिए बहुत सारे लोग और बहुत सारी पार्टियां अपना बहुत सारा जोर लगाकर हमारे देश में रह रहे बहुत सारे मुसलमानों को मोदी से बहुत सारा डराएंगे। पर, इस बात से हमारे देश के मुसलमानों को डरने की कोई जरूरत नहीं है कि मोदी आएंगे तो देश से मुसलमानों का सफाया कर देंगे। उनका पर्सनल लॉ खत्म कर देंगे और धारा 370 खत्म करके जरूरी हुआ तो कश्मीर में अनिश्चितकालीन आपातकाल लगा देंगे। यह हिंदुस्तान है। हमारा लोकतंत्र इतना बालिग हो चुका है कि वह अगर किसी को सिर पर बिठाता है तो गर्दन को झटका देने का विकल्प भी मौजूद रखता है। मोदी यह जानते हैं, और यह मानते भी है कि इतने बड़े देश में सिर्फ हिंदुत्व के बूते पर शासन मुमकिन नहीं है। क्योंकि भारत, नेपाल नहीं है। और अब तो खैर, नेपाल भी नेपाल नहीं रहा। तो फिर हमारे यहां यह सब कैसे चल सकता है, यह मोदी भी जानते ही हैं।

अब मोदी ने जो यह राष्ट्रीय फलक अर्जित कर लिया है, वहां संघ का उनके मामले में क्या फैसला होगा। यह सबसे बड़ा सवाल है। पर, इससे भी बड़ा सवाल यह है कि मोदी के कद का बीजेपी में दूसरा है कौन, जिसके बारे में सोचा जा सकता हो। रही कद की बात, तो राजनीति में खींच खांच कर किसी के राजनीतिक कद को लंबा नहीं किया जा सकता। वहां कद सिर्फ अपने कर्मों से बना करते हैं। और मोदी ने औरों के मुकाबले ज्यादा ऊंचे कद के काम तो किए ही हैं। लेकिन कद के बारे में सबसे बड़ा सच यह भी है कि वह जब कुछ ज्यादा ही लंबा हो जाता है, तो वह दूसरों के लिए कम और खुद के लिए ज्यादा मुसीबतें खड़ी करता है। मोदी की मुसीबत भी यही है। यह सही है कि चौथी बार सीएम बनकर नरेंद्र मोदी अपने मुकाम पर हैं। पर, यह मुकाम बहुत मुश्किल है, यह भी सही है। (लेखक राजनीतिक विश्लेषक और 'प्राइम टाइम' के संपादक हैं)