Thursday, December 20, 2012

सीपी, गिरिजा, गहलोत और एक अदद एहसान फरामोश !

-निरंजन परिहार-

सीपी जोशी राजनीतिक रूप से बहुत समझदार हैं। परिपक्व हैं और दूरदर्शी भी। वे बहुत बड़ी कांग्रेस के बड़े नेता हैं। और राजस्थान में वे बाकी कांग्रेसियों के मुकाबले बहुत दमदार हैं। जो लोग यह मानते हैं, उनको अपनी सलाह है कि वे अपना राजनीतिक ज्ञान जरा दुरुस्त कर लें। कांग्रेस बहुत बड़ी पार्टी है। इतिहास देखें, तो कांग्रेस में सीपी जोशी जैसे छप्पन सौ चार आए और चले भी गए। कांग्रेस के पन्नों पर उनका कोई नामोनिशान नहीं। फिर देश तो और भी बड़ा है।
हमारे देश के राजनेताओं की सूची देखें, तो दिल पर हाथ रखकर ईमानदारी से आप खुद से भी पूछेंगे, तो सीपी जोशी जैसे लोगों का कम से कम देश की राजनीति में तो कोई भी स्थान नहीं है। फिर भी अशोक गहलोत की मेहरबानियों और कांग्रेस की कमजोर राजनीतिक रणनीतियों की वजह से वे केंद्र की सरकार में मंत्री हैं। यह भी सभी जानते ही हैं। वरना, समूचा राजस्थान तो बहुत दूर की बात है, सिर्फ मेवाड़ की राजनीति में भी सीपी जोशी के मुकाबले गिरिजा व्यास बहुत भारी नेता है। देश भर में उनका सम्मान है। पूरे देश में लोग गिरिजा व्यास को जानते हैं। उनकी राजनीति को मानते हैं। लोगों के लिए उनके किए पर कार्यों पर सीना तानते हैं। महिलाओं के मामले में गिरिजा व्यास ने जो काम किए हैं, उन पर पूरी कांग्रेस ही नहीं देश भर की महिलाओं को नाज है। राज्य और केंद्र में मंत्री रहने के अलावा महिला कांग्रेस, राजस्थान कांग्रेस और महिला आयोग की अध्यक्ष जैसे कई पदों पर रहकर गिरिजा व्यास देश भर में छा गई। लोगों को भा गई। इसीलिए फिर संसद में भी आ गई। गिरिजा व्यास के लिए यह सब एक राजनीतिक सफर का हिस्सा है। इसीलिए, उन्होंने कभी अभिमान नहीं किया। लेकिन सीपी जोशी को तो जुम्मा जुम्मा साढ़े तीन साल हुए हैं, संसद में पहुंचे हुए और उनका घमंड देखा हो, तो बाप रे...। मुंहफट तो वे पहले भी कोई कम नहीं थे। किसी की भी इज्जत, ऊम्र और रुतबे का खयाल किए बिना क्या क्या बोल लेते हैं, यह जालौर – सिरोही के हमारे सांसद देवजी पटेल से ज्यादा कौन जानता है। वैसे, अपन मानते हैं कि सीपी जोशी कोई ढक्कन आदमी नहीं, पढ़े लिखे हैं। और वे जानकार भी हैं। पर, यह भी जानते हैं कि जानकारी और समझदारी के बीच रिश्तों की डोर बहुत नाजुक हुआ करती है। सीपी जोशी अगर यह जान गए होते, तो आज बड़े नेता होते। यही वजह है कि गिरिजा व्यास और सीपी जोशी के बीच लोकप्रियता की थोड़े फिल्मी अंदाज में व्याख्या करें, तो दोनों के बीच फासला हेमामालिनी और धनुष जितना है। धनुष वही, रजनीकांत के दामाद। जो, सिर्फ एक ‘कोलावरी डी’ गाकर बहुत हिट भले ही हो गए, पर अब कहां है। गिरिजा व्यास चाहे देश में कहीं भी चली जाएं, लोग उनको जानते हैं। लेकिन देश की सरकार में कई लोग ऐसे भी हैं, जो कहीं दौरे पर पहुंचते हैं, तो उनके स्वागत में आए लोग उनके बजाय साथ आए लोगों के गले में ही माला पहना देते हैं। हमारे सीपी जोशी का हाल भी कुछ कुछ ऐसा ही है। भाई, फिर भी सीधे अशोक गहलोत को ही चुनौती देने चले हैं। गहलोत सीपी के राजनीतिक जीवन के भी निर्माता हैं। पर, संयोग से केंद्र में मंत्री हो जाने के अपने भाग्य पर इतराकर सीपी, अपने चंगुओं को आगे करके गहलोत के खिलाफ ही ताल ठोक रहे हैं। सीपी के उस चंगू के धत्कर्म पर कलम चलाकर आपके जीवन का वक्त अपन बरबाद नहीं करेंगे। लेकिन, इतना जरूर कहेंगे कि अपने राजनीतिक पिता के ही खिलाफ खड़े होने और भरी सभा में तौहीन करने की गुस्ताखी और एहसान फरामोशी की तासीर कम से कम सिरोही के पानी में तो नहीं है। (लेखक राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं )