Thursday, January 3, 2013

शशि थरूर का भविष्य और अतीत के अध्याय


-निरंजन परिहार-

शशि थरूर की जीवनी में अभी कई और अध्याय जुड़ने बाकी हैं। जो ट्वीटर थरूर की जिंदगी का एक खास अध्याय रहा है। अब वही ट्वीटर एक बार फिर उनके लिए आफत बनकर आया है। ट्वीटर पर किसी ने थरूर से कहा है कि डीयर शशि थरूर, अगर आपकी बेटी के साथ रेप हुआ होता तो भी क्या आपकी यही राय होती ? थरूर की जिंदगी का यह ताजा अध्याय उस वक्त शुरू हुआ, जब उन्होंने सुझाव दिया कि दिल्ली की बलात्कार पीड़ित बाला के नाम पर बलात्कार विरोधी कानून का नाम रखना चाहिए। थरूर एक तरह से कह रहे हैं कि उस लड़की का नाम जाहिर कीजिए, वह भी उस देश में, जहां सामान्य बोलचाल में भी किसी भी बलात्कार पीड़िता का परिचय न जाहिर करने की पवित्र परंपरा रही है। थरूर के इस बयान का सीधा रिश्ता अतीत से है। और, अतीत का हिसाब किताब कुछ अलग किस्म का हुआ करता है। वह कब, कहां, कैसे, किसके जरिए, किस प्रसंग में, किस तरह से क्यों प्रकट हो जाता है, आज तक कोई नहीं जान पाया। इसीलिए कहते हैं कि अतीत कभी किसी का पीछा नहीं छोड़ता। यही वजह है कि बहुत सारे लोग अकसर अपने अतीत को आगे रखकर जिंदगी को जीने की समझदारी करते हैं। लेकिन बहुत समझदार होने के बावजूद इस मामले में शशि थरूर हर बार थोड़े बुद्धू से साबित हो जाते हैं। वैसे, थरूर का अतीत देखकर तो कम ये कम यही लगता है कि उनकी जिंदगी के बाकी बचे अध्याय भी निश्चित रूप से कोई कम विवादास्पद नहीं रहेंगे।

सबसे बड़ी मुसीबत यह है कि थरूर की सोच हमेशा सिर्फ और सिर्फ उस लोक की संकुचित सीमाओं में ही अपनी जिंदगी के सच को तलाशती है, जिसे उच्च व और भद्र लोगों का दिव्य लोक कहा जाता है। और हमारी मुसीबत यह है कि थरूर जैसे लोग उस देश को चलाने वाली सरकार में मंत्री बना दिए गए हैं, जिसकी 99 फीसदी आबादी के पास जिंदगी और उसके सच को तलाशने का वक्त ही नहीं है। बेचारे लोग, पेट पालने से ऊपर उठेंगे, तब तो सोचेंगे जिंदगी के बारे में। लंदन में जन्मे हमारे देश के आज के मानव संसाधन राज्य मंत्री थरूर एक बार फिर हमारे देश की खबरों में हैं। कभी देश के आम आदमी को कैटल क्लास यानी जानवरों की श्रेणी वाला कहकर खबरों में आए थे। आम आदमी के नेता के रूप में विख्यात राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उस वक्त थरूर का जोरदार विरोध किया था। और सोनिया गांधी को आखिरकार थरूर को सरकार से निकाल बाहर करना पड़ा। अर्धांगिनी बनने से पहले सखी के जमाने में सुनंदा पुष्कर की आईपीएल टीम की वजह से, कभी ललित मोदी से याराना रखने और कभी राष्ट्रगान को ले कर थरूर अकसर फंसते हैं। कभी ट्विटर पर अपने बयानों से विवाद में रहते हैं। तो कभी बीस साल के बेटे की बेहद खूबसूरत मां उन सुनंदा पुष्कर के तीसरे पति के रूप में 55 साल की उम्र में ब्याह रचाने की वजह से थरूर खबरों में रहे हैं। गुजरात के चुनावों में सुनंदा पुष्कर पर नरेंद्र मोदी के कमेंट जिसकी वजह से थरूर चर्चा में रहे, उसमें भी थरूर का अतीत ही नीहित था। वैसे, 57 साल की उम्र में भी बहुत जलवेदार जवान जैसे दिखने वाले थरूर बहुत सालों तक अमरीका में रहकर पूरी दुनिया देखते रहने के अपने अनुभव के आधार पर ही हर बार अपने अत्याधुनिक अवतार में पेश हुए हैं। बलात्कार पीडिता के नाम को जाहिर करना भी उनकी इसी सोच का हिस्सा है। यह दिव्य किस्म की उनकी छवि और अत्याधुनिक सोच भी उनके अतीत का आईना ही कही जा सकती है।

थरूर की एक और दिक्कत यह भी है कि वे बेचारे जो सोचते हैं, उसे कह भी देते हैं। और इंटरनेट की वजह से बात निकलेगी तो आजकल बहुत दूर तक जाने में भी देरी नहीं लगाती। पलक झपकते ही हर बात दुनिया भर में फैल जाती है। अमेरिका और दुनिया के बहुत सारे दूसरे लोकतांत्रिक कहे जानेवाले देशों के कई बड़े नेता ट्विटर और फेसबुक पर हैं और खुलकर वहां अपनी निजी राय भी जाहिर करते हैं। फ्रांस के सरकोजी तो अपनी प्रेमिकाओं की तस्वीरें ऑरकुट पर डालते हैं और जनता से उन पर राय भी मांगते हैं। मगर यह भारत हैं भाई साहब। हमारी राजनीति के कुछ पारंपरिक और कुछ सुविधाजनक संस्कार हैं। भारतीय राजनीति में एक नेता की जो छवि है, उसे तोडऩे वालों को आसानी से माफ करने की भारतीय समाज में कोई परंपरा नहीं है। अमिताभ बच्चन जैसे महानायक इसी छवि की वजह से राजनीति की गलियों से निकलकर वापस फिल्मों में समा जाने को अभिशप्त हुए।

शशि थरूर राजनीति में हैं। और राजनीति में बने रहने के लिए आपके पास एक बड़ा आश्रय होना चाहिए और उस आश्रय का सम्मान या सम्मान का अभिनय करना तो कम से कम आना ही चाहिए। भारतीय राजनीति में समाज ही सबसे बड़ा आश्रय माना जाता है। वह समाज, उसकी मानसिकता और मावनीय पहलू ही हमारे लोकतंत्र की सबसे बड़ी पूंजी हैं। यह बात थरूर भूल गए। और भूल शशि थरूर से इसलिए हुई, क्योंकि वे कोई पेशेवर नेता नहीं है। लगातार हो रही ऐसी अनेक भूलों के बाद आगे जाकर थरूर की राजनीति का क्या होगा, इस पर अभी से कुछ भी नहीं कहा जा सकता। लेकिन कांग्रेस के लिए वे कोई बहुत बड़ी पूंजी नहीं हैं। क्योंकि राजनीति करना थरूर की मजबूरी नहीं हैं। वे राजनीति की बैसाखियों पर सवार होकर जीनेवाले इंसान नहीं हैं। जब तक उनकी जिंदगी है, सात लाख रुपये हर महीने टेक्स फ्री पेंशन उनको संयुक्त राष्ट्र से मिल ही जाएगी। फिर थरूर जिस दिन भी तय कर लेंगे, उस दिन कोई ना काई बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी उन्हें अपना सीईओ बना कर भी ही बुला लेगी। फिर सुनंदा पुष्कर तो सेठानी भी हैं, और उनकी एक क्रिकेट की टीम भी। थरूर का चमकदार अतीत यहां भी उनके साथ खंभे की तरह खड़ा है। सो, बयानों पर बवाल हो तो हो। उनकी बला से। थरूर को राजनीतिक नुकसान की चिंता नहीं है। भविष्य सुरक्षित है, इसलिए थरूर के थरथराने की संभावना बहुत कम है। मगर, कांग्रेस में और खासकर भारतीय राजनीति में शशि थरूर जैसे अभिजात मुद्राओं में बयान देकर सामाजिक संस्कारों का अंतिम संस्कार करनेवाले नेताओं के अभी तक कोई जगह नहीं बन पाई है, उसका क्या ? (लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)

बेबस बाला, बर्बर बलात्कार और देश के दर्द की दास्तान


-निरंजन परिहार-

मुंबई। खेत रोए, खलिहान रोए। पेड़ रोए, पखेरू रोए। हर आंख में आंसू और हर दिल में दर्द का दावानल। पूरा देश आहत। हर मन मर्माहत। सबसे बड़ी नेता सोनिया गांधी सोई नहीं। तो, मजबूर होकर मनमोहन सिंह भी एयरपोर्ट भागे। एक विशेष विमान में सिंगापुर से उस युवती की लाश शनिवार की रात यानी रविवार को तड़के भारत आई। तो, उसको लेने दोनों दिल्ली के हवाई अड्डे पर हाजिर थे। पहले ऐसा कभी नहीं हुआ। पहली बार हुआ। जब उसे इलाज के लिए सिंगापुर ले जाया गया था, तो वह जिंदा थी। पर, लौटी तो लाश। सदा के लिए सो गई, पर पूरे देश को जगा गई। सारा देश दुखी। जया बच्चन जार जार रोईं। तारा भंडारी तार तार दिखीं। शबाना आजमी सुबक कर रोईं। गिरिजा व्यास गमगीन। और स्मृति इरानी सन्न हैं।

सिंगापुर से शनिवार की पहली किरण के साथ युवती की मौत की खबर भी आई। फिर शनिवार की देर रात उसका शव लेकर विमान भारत में उतरा। और रात को ही कड़ी सुरक्षा में अंतिम संस्कार भी करवा दिया गया। पूरा देश दो दिन से नहीं, बीते कई दिनों से सिर्फ और सिर्फ उसी युवती की बात कर रहा है। लंदन से लेकर लालकिले और लाल चौक से लेकर लालबाग तक लोग बहुत गुस्से दिखे। गुस्सा लोगों का दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित पर भी जमकर उतरा। जो देश फिल्मी गीतों में शीला की जवानी वाले गीत सुनकर खुश होता रहा है, वह जंतर मंतर से भागती वयोवृद्ध शीला दीक्षित की दुर्दशा देखकर मजे ले रहा था। मजे इसलिए, क्योंकि वे वहां राजनीति करने आई थीं। हमारे देश में हैवानियत भरा जो हादसा हुआ, वह बहुत दुखद है। लेकिन दुख प्रकट करने जो लोग दिल्ली और देश भर में जहां जहां जमा हुए, उनके प्रति राज करनेवालों का रवैया देखकर तो देश दुखी तो है ही शर्मसार भी है।

Renowned Journalist Mr. Niranjan Parihar , Mr. Vishwanath
Sachdev, Mr. Nand Kishor Nautial, Police Commossioner of
Mumbai Mr. MN Singh with HE Governor of UP Mr. Pandit
Vishnu Kant Shashtri
हमारे हिंदुस्तान की एक युवती के साथ दिल्ली में दरिंदगी को जो खेल हुआ, उससे सारा देश दुखी हुआ। हमारे माननीय प्रधानमंत्री भी दुखी हुए थे। बहुत दबाव और मजबूरी में मनमोहन सिंह उस दिन जब देश के सामने टीवी पर राष्ट्र के नाम संदेश लेकर आए थे, तो कह रहे थे कि तीन बेटियों का पिता हूं, सो हादसे के दर्द को समझता हूं। तो फिर, श्रीमती तारा भंडारी का प्रधानमंत्री से ज्यादा दुखी होना वाजिब है। वे महिला हैं, ऊपर से बहुत सारी बेटियों की मां भी है। चार तो बाकायदा, उनकी कोख से जन्मी हैं। पर, बहुत सारी बेटियां तारा भंडारी के और भी हैं, जिनमें से कुछ उनके पास पलीं तो कई उनकी ममता की छांव में बड़ी हुईं। श्रीमती भंडारी इस हादसे से बहुत हिल गई हैं। राजस्थान विधानसभा की उपाध्यक्ष और राजस्थान महिला आयोग की अध्यक्ष रही तारा भंडारी मुंबई में मिली थीं। वे दुख के दरिया में इतनी डूबी हुई थी कि मौत की खबर सुनकर शनिवार को खाना तक नहीं खा पाईं। उनकी दो बेटियों सीमा और कल्पना ने कहा, अपनों ने भी कहा, थोड़ा सा तो खा लीजिए। पर श्रीमती भंडारी बोली, आज क्यों खाना... रोज खाते ही हैं ना। दुख शायद भूख को भी भीतर बहुत गहरे तक मार डालता है। यही वजह रही कि सिंगापुर में भारत की उस बेटी की मोत की खबर पाकर हमारे भारत की बहुत सारी महिलाओं ने भी उस शनिवार को भोजन भी नहीं किया। रविवार भी कईयों का यूं ही गुजरा।

दिल्ली की बस में उस बाला के साथ हुए बेरहम बलात्कार, फिर उसकी मौत ने देश की बहुत सारी महिलाओं की तरह ही तारा भंडारी की सारी खुशियों को भी काफूर कर दिया। समृति इरानी और तारा भंडारी गुजरात के चुनाव में विधानसभा सीटों की प्रभारी थीं। पूरे दो महीने तक बहुत सारी मेहनत से काम करके दोनों अपनी अपनी सीटों पर अपनी पार्टी को जिताकर बहुत खुश थीं। पर, फिलहाल दोनों मुंबई प्रवास पर हैं और दोनों दुखी हैं। स्मृति से बात हुई और तारा भंडारी मिली थी। श्रीमती भंडारी कह रही थी कि आखिर कोई इंसान इस हद तक जब दरिंदगी पर उतर जाए, तो उसको हमारे संस्कारों, समाज और हमारी व्यवस्था सबकी बराबर की जिम्मेदारी कहा जा सकता है। लेकिन सरकारों की जिम्मेदारी ज्यादा है। ऐसे हालात में समाज को जिन पर विश्वास होता है, उनकी जिम्मेदारी कुछ ज्यादा बढ़ जाती है। कह रही थी कि अब हमें ज्यादा जिम्मेदार होना होगा। हमारी बेटियों को ज्यादा मजबूत होना होगा। क्योंकि सिर्फ कानून से ये चीजें नहीं रुकेंगी। राजनीति में आने से पहले से श्रीमती भंडारी महिला अधिकारों की रक्षा के लिए लड़ने के मामले में एक हद तक कुछ कुछ कुख्यात किस्म तक बहुत विख्यात सामाजिक कार्यकर्ता रही हैं। उनके जमाने में उनके इलाके सिरोही में लोग उनसे डरते ही इस बात को लेकर थे कि कोई महिला किसी दिन कोई शिकायत लेकर कहीं श्रीमती भंडारी के पास न पहुंच जाए। पहुंच गई, तो खैर नहीं। ऐसी मजबूत महिला होने के बावजूद श्रीमती भंडारी भीतर तक हिल गई है, तो हादसे की हकीकत और उसके दर्द की दास्तान में डूबी आम महिलाओं की भावनाओं और दुख को समझा जा सकता है।

दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित के एक महिला होने के बावजूद उनकी दिल्ली में महिलाओं के मामले में पुलिस से आम लोगों में संवेदनशून्यता के बढ़ने के लिए वे सरकार को जिम्मेदार बताती है। श्रीमती भंडारी दिल्ली से ज्यादा देश की सरकार को जिम्मेदार मानती हैं, क्योंकि देश भर में महिलाओं के प्रति अत्याचार और जुल्म के साथ साथ बलात्कार के हादसे बढ़ रहे हैं। श्रीमती भंडारी बीजेपी की नेता हैं, इसलिए सरकार के विरोध में बोल रही हैं, ऐसा नहीं है। बल्कि इसलिए, क्योंकि दर्द को भुगत रही किसी महिला के मन की मुसीबत को किसी भी मनमोहन सिंह के मुकाबले वे ज्यादा शिद्धत से समझती हैं। बर्बर बलात्कार की शिकार वह बेबस बाला की मौत पर हर प्रदेश के हर घर में हर आंख से आंसू टपके। हर शहर में हजारों ने हाथों ने जब मोमबत्ती जलाकर उसको श्रद्धांजली दी, तो उन हजारों – लाखों मोमबत्तियों की रोशनी में उस बेबस बाला की आत्मा को जिंदा देखा। जया बच्चन इसीलिए रो रही थीं। जब जिंदा थी, तो वह किसी किसी की ही कुछ लगती थी, पर जहां से जाने से कुछ दिन पहले और जाने के बाद देश के हर दिल से दर्द का रिश्ता कायम कर गई। अब हर किसी को लगता है जैसे वह हमारी अपनी ही थी। हर एक से उस युवती रिश्ता इतना गहरा बंध गया कि जिसने भी हालात को जाना, वह दर्द के दरिया में गोते लगाने लगा। बलात्कार के खिलाफ बहुत सख्त कानून बनाने के लिए आखिर और ऐसे कितने हादसों का इंतजार करना पड़ेगा, जया बच्चन, शबाना आजमी, तारा भंडारी, स्मृति ईरानी और ऐसी ही लाखों महिलाओं को सिर्फ इस एक मासूम से सवाल का जवाब सरकार से चाहिए। (लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)